मन करता है
मन करता है
तोड़ के रस्मों के घुँघरू
नील अम्बर में उड़ती जाऊँ
हरे भरे बागों से मैं
पुष्पों की गंध चुराऊँ
आगोश में भर कर जहाँ की
खुशियाँ नयी मैं गले लगाऊँ
भोर होय अगली जब नित
नया नया मैं तराना गाऊँ
पंख लगाकर पहुंच आकाशगंगा
घंटों तारों संग संवाद सजाऊँ
फिर धरा पर आकर व्हेल की
भाँति गहरे समुन्द्र में गोता खाऊँ
सुनहरी धूप में खोल केश मैं
खोखले रिवाज का खरपतवार हटाऊँ
झूम झूम कर आगाज करूँ मैं
जीवन में चाँदनी सी चमक फैलाऊँ।
