मन की गाँठे
मन की गाँठे
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उन्हें जीने दो मन की गाँठो के साथ,
मैंने तो कब का उन्हे सुुुलझाकर,
अपना दुुुुुशाला बना दिया है।
ओढ़ के बैठी हूँ , गुुुलाबी सी धूप में।