मन के घाव
मन के घाव
जीवन के सफर में कही धूप कही छाँव है,
जो आसानी से ना भरे वो मन के घाव है ,
काली है काया पर मधुर स्वभाव है
गोरा है तन तो क्या बोली में कोमलता का अभाव है ,
कहीं अकेलेपन का दर्द कहीं अपनेपन में तनाव है ,
वार करता वक़्त की धार वजह बदलती चीजों से प्यार है ,
चीखें दब गयी सिसकियों में सबको अपने गुरुर से लगाव है ,
ना एहसास ना ख्वाब ना मकसद ना मंसूबे सबको मुस्कुराहट से इंकार है ,
मन चली मोहब्बत में उलझे पड़े है कहाँ किसी के फितरत में ठहराव है ,
बस रसमन निभा लेते हैं लोग मिलावटी रिश्तों को जबकि मन ही मन करवाहट बेशुमार है ,
धूमिल पड़ी है जमीन पर बढ़ जाते है कदम,
हर तरफ अच्छे बुरे का पड़ाव है ,
लाखों फितूर उतर जाते है मन से बस थोड़ी सी हमदर्दी की दरकार है ।
