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DRx. Rani Sah

Abstract

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DRx. Rani Sah

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मन के घाव

मन के घाव

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जीवन के सफर में कही धूप कही छाँव है, 

जो आसानी से ना भरे वो मन के घाव है , 


काली है काया पर मधुर स्वभाव है 

गोरा है तन तो क्या बोली में कोमलता का अभाव है ,

 

कहीं अकेलेपन का दर्द कहीं अपनेपन में तनाव है , 

वार करता वक़्त की धार वजह बदलती चीजों से प्यार है , 


चीखें दब गयी सिसकियों में सबको अपने गुरुर से लगाव है , 

ना एहसास ना ख्वाब ना मकसद ना मंसूबे सबको मुस्कुराहट से इंकार है , 


मन चली मोहब्बत में उलझे पड़े है कहाँ किसी के फितरत में ठहराव है , 

बस रसमन निभा लेते हैं लोग मिलावटी रिश्तों को जबकि मन ही मन करवाहट बेशुमार है , 


धूमिल पड़ी है जमीन पर बढ़ जाते है कदम, 

हर तरफ अच्छे बुरे का पड़ाव है , 

लाखों फितूर उतर जाते है मन से बस थोड़ी सी हमदर्दी की दरकार है ।


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