"मक्खनसी मैं "
"मक्खनसी मैं "
निशब्द मेरे शब्दों को समझ जाता वो तू।
"मुजमे मैं छिपा हू मैं" वो समझता तू।।
कहानियां कई सुनी और सुनाई
मगर मुजमे ही में एक कहानी हूँ,
ये बात कुछ अलग अंदाज में
कह कर अनजान बन जाता तू।।
कई मांजे टूटे जुड़े।
मगर आज भी डट के खड़ा है तू।।
में वो फिल्मों की फितरत रखने वाली,
और सादगी भरा तू।।
और ये, तू मैं का फासला हैं जो
न जाने कौनसी मंज़िल तय कर हवाके
झोंके संग छू यूँ निकल जाता तू।।