मकाम
मकाम
बिन सलाहियत भी कई बार मिल जाते हैं मकाम
ज्यों हवायों के बल पे तिनके भी छूते हैं आसमान
खुद को ऊँचाई पे देख उमड़ता है अभिमान
मगर यह बात भूल जाते हैं तिनके नादान
के बिन पँखों की है ये पल भर की उड़ान
जैसे ही हवायों का साथ छूटेगा
मन में पैदा हुआ हर भ्रम टूटेगा
जिस मिट्टी से उठे थे
वक्त उस मिट्टी में फिर मिला दे गा
मिट जायेगा मन में पैदा हुआ अभिमान
नजर आ जायेगा अपना स्थान।