मजबूर थे हम
मजबूर थे हम


मजबूर थे हम
कितने दूर थे हम,
एक वक़्त ही था
जो पास था।
वरना तन्हाइयों में भी
मशहूर थे हम,
कितने दूर थे हम !
तड़पता था दिल
बेचैनियाँ भी होती थी,
छुप-छुप के अकेले
वो भी तो रोती थी।
क्या गम था साहिब
पता नहीं, वो क्यूँ
नहीं बताती थी।
पास होके भी
इतनी दूर थे हम
मजबूर थे हम !