मजबुर हूं
मजबुर हूं
न शौक है मुझे बड़ी - बड़ी भावों को व्यक्त करना,
मज़बूर हूं,
हैं इन सज्जनो के फटकार से मुझे बचना।
पंक्तियों में कहती हूं मन की बात,
किसीका भी मिलता नहीं मुझको हाथ ।
हर बात मेरी तुम्हें है लगती गलत,
कैसे समझोगे के की है मैंने अपनी काया पलट।
मज़बूर हूं,
स्नेह हैं मुझको सबसे,
मेरी भावनाओं का आदर क्यों नहीं हो करते।
हर व्यक्ति का अपना दिन है आता,
उम्र का तकाज़ा साथ लिए बहुत कुछ जाता ।
मज़बूर हूं,
चाहकर भी न भुला पाउंगी सब,
न जाने ये उलझन सुलझेगी कब।
