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Pt. sanjay kumar shukla

Abstract

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Pt. sanjay kumar shukla

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मिट्टी - मेरे अनमोल रत्न

मिट्टी - मेरे अनमोल रत्न

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(१) मै हूं एक कुम्हार,

जो मिट्टी के रचना कार ।

चक्की पर गोल घुमा घुमा कर,

पहनाता हूं उसको सुंदर हार ।।


(२) जिस तरह से मिट्टी की विकार को,

निकाल फेकता हूं बाहर ।

वैसे ही अपनी पेट की पीड़ा को,

रखता मै कही दूर हूं बाहर ।।


(३) हमने भी कुछ सपने,

बुन कर रखे थे मिट्टी के संग ।

सुखद जीवन की आस में,

लड़ रहे हैं बाजारों में जाकर जंग ।।


(४) मैं पिलाता हूं सबको, 

शीतल सुराही की जल ।

तप रहा हमारा पूरा अंग,

हृदय मेरा असीतल पल पल ।।


(५) हम कुम्हारों की यहां कीमत शून्य,

सवारने में लगा हूं अपनी बच्चों की कल ।

बड़े विचार बड़ी सोच बड़ी उम्मीदों,

के संग चल रहा हूं हरपल ।।


(६) मेरी मेहनत की कोई मोल नहीं,

कोई रंग नहीं मेरे जीवन का ।

मेरी मिट्टी की इस क्ला कोई मान नहीं,

गरीबी जंग बनी मेरी जीवन का ।।


(७) एक वस्त्र मटमैला सा धोती में,

निहारता इस दुनिया की रंगमंच को ।

मैं हाथ जोड़कर विनती करता,

छिति,जल,पावक,गगन,समीरा इस पंच को ।।


(८) हर मेरी पीड़ा को,

हे जल! भीगा कर

मुझको अपनी जल से कर

दे पावन जीवन तू मेरा ।

हे पावक! मुझे अपनी आगोश में करले,

कर स्वीकार जीवन तू मेरा ।।



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