मिट्टी का घर
मिट्टी का घर
मिट्टी के कच्चे से घर में
किसी संग पक्का सा रिश्ता निभाना है,
इस दुनिया की भीड़ से दूर
उस संग कहीं एकांत में जाना है,
महँगी और शानदार चीज़ो से नहीं
मगर छोटी-छोटी खुशियोँ के
हसीन पलों से सजाना है,
के जो दरारे कभी आई भी तो
अपने प्यार से कर देगें ना उसकी लिपाई,
मगर इन ईटोँ से बने घरों की
मरहम्मत में मज़दूर लगते है
और देखा है मैनें ये दुनिया तो बस
रिश्तों की कसाई है,
दिखावा कर भला कौन
ज़्यादा दिन मुसकुराया है
मुझे तो सादगी अपना
उस संग हर पल खिलखिलाना है,
के इन पक्के घरों और कच्चे रिश्तों के दौर में
मुझे मिट्टी के कच्चे से घर में
किसी संग पक्का सा रिश्ता निभाना है
पक्का सा रिश्ता निभाना है।
