STORYMIRROR

Linnet Chahal

Abstract

4  

Linnet Chahal

Abstract

बीता कल..

बीता कल..

1 min
383

ये कैसी लड़ाई है 

जो अपने ही बीते कल से लड़ रहा हूँ,

ये कैसी लड़ाई है

जिसमें अनचाहे लोगों कि वजह से

अपने करीबियों को खो रहा हूँ,


रोकर थक चुका हुँ जिन पर

इक दफ़ा फिर उनहीं पर रो रहाँ हूँ,

बड़ी मुश्किल से भुलाया था जो

क्यूँ फिर वो आगे आ रहा है,


जिन लोगों से की थी नफ़रत

अब ये वक्त उनहीं के कारण

खुद से नफ़रत करा रहा है।

ये कैसी लड़ाई है

जिसमें ये बीता कल मुझे हरा रहा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract