माँ
माँ
अपनी तकलीफ़ को अंदेखा कर
जिसने मुझे हँसाया है,
दुनिया की ना सुनकर एक
जिसने मुझमें विश्वास जगाया है।
खुद भूखी रहकर
जिसने पहले मुझे खिलाया है,
अपनी उस माँ की तारीफ़ में,
कहूँ भी तो क्या
मुझे तो ये अक्षर जोड़
बोलना भी उसी ने सिखाया है।
मैं तो बस तेरा एक हिस्सा हूँ
तूझी से ही पहचान है मेरी
वरना तो दुनिया की भीड़ में
मैं भी बस एक गुमनाम किस्सा हूँ !
