मित्रता का रंग
मित्रता का रंग
उठाया गिलास, भरा था जो दोस्ती के रस से
डाला संसार का हर रंग उसमें
आशा-निराशा, मान-अपमान, घृणा-प्रेम, ऊँच-नीच
कोई रंग तो बाकी नहीं रखा था मैंने.
पर हर बार घुल गए सारे रंग
दोस्ती के रंग में,
और पानी पहले की तरह ही रंगहीन रह गया.
जाना मैंने – दोस्ती कोई रंग नहीं छोड़ता
उसका अपना एक रंग है
समो लेता है जो हर रंग को खुद में.
अद्भुत है यह रंग मित्रता का
घुल जाती हैं जिसमें
जटिलताएं जिंदगी की.
न कोई बड़ा न छोटा,
न कोई ऊँचा न नीचा,
न कोई अमीर न गरीब.
हर मित्र जुड़ा है दूसरे से
विश्वास की डोर से.
विश्वास जो सींचता है जीवन-बेल को.