मित्र बनाता
मित्र बनाता
मित्र बनाता हूँ
तलाशता हूँ,
अपनी रूह का सुकून
और बेचैन हो जाता हूँ
मित्र बनाता हूँ,
जो सुने मुझको,
जिसके आगे
दिल खोल
मैं जाता हूँ
मित्र बनाता हूँ
रूह का रिश्ता जिससे,
दो शब्द सुनने से जिसके,
लगे खुद से ही मिला,
आज खुलके
मित्र बनाता हूँ
जो रूह की तनहाइयाँ
मिटा जायें
आईना बनके
जीवन में आ जायें
जीवन के अर्थ समझा जायें
मित्र बनाता हूँ
दुनियावी रिश्तों
सा थोपा न जायें
प्यार में सियासी -रंग न लायें
जो समझे मुझको,
बिन कहे हर बात सुन जाये
वक्त पे साथ,
सांसो -सा सांस
बन कर चला जायें
मित्र बनाता हूँ
कहां पाऊंगा
ऐसा मित्र जब यह जान जाऊंगा
भूत और वर्तमान की ,
क्या. . . ?
मैं बात करूं
भविष्य का गारन्टी कार्ड भी ,
कहां से पाऊंगा
मित्र तो बहुत बनाता हूँ
कौन मेरा मित्र है,
यह सच
साबित नहीं कर पाता हूँ
रूह को
पल का सुकून मिलता है
परम -आनंदस्वरूप,
मित्र कहा से पाऊं
मित्र बनाता हूँ
अपनी भीतर के
सूने -पन के साथ,
मित्रों के साथ भी
अकेला ही रह जाता हूँ।
