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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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मिलने के लिए

मिलने के लिए

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तुमसे एक बार मिलने के लिए


गुर्राती हवाओं को कपड़ों की तरह पछीट सकती हूँ

मेघों के आवारा काले अश्वों की सवारी कर सकती हूँ

समन्दर की लपलपाती लहरों के बीच सुरंग बना सकती हूँ

दशरथ मांझी की तरह पहाड़ काट राह बना सकती हूँ

तपते सेहरा पर पगथलियों को झुलसा सकती हूँ


कई बार मर सकती हूँ

कई बार जन्म ले सकती हूँ

दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं से गुज़र सकती हूँ


पर अगर तुम्हारा जी न चाहे मिलने का

तो नहीं कर सकती कुछ बेहद आसान से काम


जो तुम न मिलना चाहो मुझसे

तो घुटनों पर बैठ मिलने की भिक्षा नहीं मांग सकती

तुम्हारे द्वार तक पहुंचकर भी तुम्हारा नाम नहीं पुकार सकती

जीवन के आख़िरी पलों में तुम्हें देखने की ज़िद करते मन का कहा नहीं मान सकती


तुम्हें याद करते हुए नदी भर आंसू उलीच सकती हूँ

लेकिन तुम्हारे समक्ष उनका अंश-मात्र भी प्रदर्शित नहीं कर सकती।


मानिनी प्रेमिका हूँ

टूटकर प्रेम कर सकती हूँ ,

लेकिन प्रेम में टूटकर स्वयं को लज्जित कदापि नहीं कर सकती


तुम से महज एक बार मिलने के लिए।


        


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