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Vikas Sharma Daksh

Abstract

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Vikas Sharma Daksh

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मिलेंगे

मिलेंगे

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अपने घर में नहीं तो बाजार में मिलेंगे,

बाद मरने के हम टंगे दीवार में मिलेंगे।


वैसे कोई काम धंधा तो है नहीं हमें,

फुर्सत से मगर सिर्फ इतवार में मिलेंगे।


ज़िन्दगी शराफत से गुजरे तो अच्छा है,

वरना बन के ख़बर, अख़बार में मिलेंगे।


मुलाक़ात में तोहफ़े लाने का तौर भी है,

खाली हाथ साहिब हम बेकार में मिलेंगे।


वक़्त की पाबंदी भी लाज़िम है हज़ूर,

हमेशा थोड़ा ही, हम इंतज़ार में मिलेंगे।


इक प्याला हो जाए इंतज़ार इंतज़ार में,

थोड़ा होश में तो थोड़ा खुमार में मिलेंगे।


'दक्ष' बारह मासी ख़ार से चुभते हैं साहब,

फूल थोड़ा ही जो मौसमे-बहार में मिलेंगे।


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