STORYMIRROR

karan ahirwar

Abstract Drama Thriller

4  

karan ahirwar

Abstract Drama Thriller

मीठा ज़हर

मीठा ज़हर

1 min
252

तेरे चेहरे का नूर

मेरी किस्मत का दस्तूर

दोनो ने मुझे झांसे में रखा

बाहर से स्वर्ग दिखाया मुझे

और अंदर ही अंदर

नरक के काबिल भी नही छोड़ा


तेरा इश्क मीठा जहर था

पीने में तो मजा आया

लेकिन जान लेकर ही बाहर निकला

अब इस बैचेनी की वजह तू ही है शायद

क्युकी खंडहरों में कौन घर बसाता है

सो मुझमें भी कोई दस्तक देता नही तेरे बाद

या यूं कहे कि मैने अपनी कुंडी ही हटा दी

ताकि कोई और दूसरा इसमें दस्तक ही न दे सके


अब तो बस खालीपन से भरा हूं मैं

तुझसे पूरा होने की आस में हूं मैं

ये आस कल भी थी सो आज भी है

बस आस को आजकल नए आसरे मिल रहे 

जिनसे फल फूल रहा

बरना तो ये आस भी मर जानी थी

तेरी यादों की तरह।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract