मीठा ज़हर
मीठा ज़हर
तेरे चेहरे का नूर
मेरी किस्मत का दस्तूर
दोनो ने मुझे झांसे में रखा
बाहर से स्वर्ग दिखाया मुझे
और अंदर ही अंदर
नरक के काबिल भी नही छोड़ा
तेरा इश्क मीठा जहर था
पीने में तो मजा आया
लेकिन जान लेकर ही बाहर निकला
अब इस बैचेनी की वजह तू ही है शायद
क्युकी खंडहरों में कौन घर बसाता है
सो मुझमें भी कोई दस्तक देता नही तेरे बाद
या यूं कहे कि मैने अपनी कुंडी ही हटा दी
ताकि कोई और दूसरा इसमें दस्तक ही न दे सके
अब तो बस खालीपन से भरा हूं मैं
तुझसे पूरा होने की आस में हूं मैं
ये आस कल भी थी सो आज भी है
बस आस को आजकल नए आसरे मिल रहे
जिनसे फल फूल रहा
बरना तो ये आस भी मर जानी थी
तेरी यादों की तरह।
