मिडिल क्लास की व्यथा
मिडिल क्लास की व्यथा
मिडिल क्लास बस एक अभिशाप सा हो गया है,
वर्ग विशेस का जीना बस पाप हो गया है।
कन्धे शनै: शनै: मजबूत होते जा रहे हैंं
आय से ही कर दे दे कर झूलते जा रहे हैं।
मानो तो देव नही तो पत्थर,
सोच भारी है सब पर।
जो किताबों से पिण्ड छुड़ा बैठा है,
वो ही आय का 'कर' चुरा बैठा है।
ज्ञानी समाज के बोझ को ढो रहे हैं,
और बही खाते वाले टैक्स पयेर्स की जान को रो रहे हैं।
GST का कुछ ऐसा डर है, क्युंकि हर चीज में कर है।
एक अदद घर और उसकी इ म आई,
देने में महीने की जोड़ गांठ गई।
उनका बजट तो हर साल आता है
और इनका, अल्पायु महीना ना चलता है।
मुनिमी गई पर सूद खोरी न गई,
लाल जिल्द की जगह चतुर डब्बे ने ले ली है,
धोती वाले लाला की जगह,
सूट बूट वाली बाला ने ले ली है।
समय बदल गया है पर अंदाज वही है,
महात्मा गांधी, आज भी मजबूरी का नाम वही हैं।
देखीये जीवन की त्रासदी कैसी है,
मिडिल क्लास की व्यथा जैसी है।
नादान सबका बोझ उठाता है ऐसे,
सबसे जिम्मेदार सदस्य कुटुम्ब का हो जैसे।