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Abha Chauhan

Abstract Tragedy

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Abha Chauhan

Abstract Tragedy

महंगाई

महंगाई

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आटे दाल चावल के बढ़ रहे हैं दाम

स्कूटर - कार का नहीं रह गया है काम।

क्योंकि पेट्रोल हो गया है बहुत महंगा

अब सबको पैदल ही चलना पड़ेगा।


उच्च शिक्षा लेने नहीं रह गई आसान

पा सकते हैं सिर्फ अब धनवान।

अब किताबों के बढ़ गए हैं मोल

राशन की दुकान पे मारते है तोल।


यदि पड़ गया कोई बीमार तो

मुश्किल हो गया है लेना दवाइयां।

हॉस्पिटल के बिलों को देखकर

चेहरे से उड़ जाती है हवाइयां।


मनोरंजन करना तो दूर अब तो

 जरूरत भी पूरी नहीं कर पाते।

बहुत ज्यादा खर्च के डर से

किसी मेहमान को नहीं बुलाते।


इस महंगाई नाम के रोग ने

सबकी तोड़ डाली है कमर।

बजट आने से पहले ही

दिख जाता है इसका असर।


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