महाराणा का मेवाड़
महाराणा का मेवाड़
महाराणा का मेवाड़
दे दूं अकबर मेवाड़ तुझे
हरगिज़ मुझको स्वीकार नहीं
जो शीश झुका दे राणा का
ऐसी कोई तलवार नहीं।।
हम जिते हैं उन सिंहो से
यहां गीदडों का कोई द्वार नहीं
हम डसतें हैं उन नागों से
जिसका कोई उपचार नहीं।।
भाले बरछी ये तीर मेरे
बस शोभा के पतवार नहीं
ये यमपाश से अचूक हैं सब
खाली जाता कोई वार नहीं।।
एड़ी से चोटी लगा ले तू
मैं मानूंगा कभी हार नहीं
तू जिते जी राणा पर अकबर
कर सकता अधिकार नहीं।।
आधी भारत का प्रलोभन
तेरी मनसा इकरार नहीं
राणा को मोहित कर डाले
ऐसा कोई उपहार नहीं।।
हम माटी के अभिमानी हैं
हां मां मेरी क्षत्राणी है
जो बेच दे अपनी जननी को
हां लहू नहीं वो पानी है।
मैं बन जाऊं अनुचर तेरा
तू तो कोई अवतार नहीं
जब तक है प्राण कलेवर में
तेरी कर सकता जयकार नहीं
दे दूं अकबर मेवाड़ तुझे
हरगिज़ मुझको स्वीकार नहीं
जो शीश झुका दे राणा का
ऐसी कोई तलवार नहीं।।