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Devraj Sharma

Abstract

4.4  

Devraj Sharma

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मेरी शाम

मेरी शाम

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ये ढलता सूरज ये बहता आसमान कहते हैं बहुत कुछ,

ये लौटते लोग ये लौटते परिंदे कहते हैं बहुत कुछ,


खोया है बहुत कुछ कईयों ने दिन के उजाले में,

सबके दुख दर्द ढक जाएंगे रात के साए में,


कुछ दर्दों को कुछ दुखों को ढका रहने दो रात के अंधेरे में,

चमकना है जिन्हे वो चमकेंगे चांद की चांदनी में


आखिर पाया है उन्होंने भी खोकर बहुत कुछ।


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