सूरज
सूरज
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ये डूबता सूरज कहीं डूब तो ना जाएगा सदा के लिए
कहीं छोड़ तो ना देगा अंधेरी राहों में सदा के लिए,
कैसे मनाऊं इस डूबते सूरज को,
जो जा रहा है छोड़ के मुझको,
तुम कल भी निकलना ,कहीं छिप ना जाना ,
उतार चढ़ाव होते हैं ये मैंने भी माना,
मगर ये दो पल का उजियारा फिर अंधरिया ये कैसी तेरी रीत है,
मगर मेरे लिए तो तू छिप ही गया ये कैसी तेरी प्रीत है।।