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Devraj Sharma

Abstract

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Devraj Sharma

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प्रेम परिभाषित

प्रेम परिभाषित

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प्रेम एक संगठित भाव है दुनिया के सभी झूठे वादों का, झूठी बातों का,

प्रेम ' झूठ' है ये जानकर भी हम उम्रभर उसको ' सत्य ' करने की कोशिश में लगे रहते हैं,

प्रेम निर्जीव है जिसे जान देने के लिए हम केवल इंतज़ार कर सकते हैं।

प्रेम परिभाषित है उम्र भर के संग का पर प्रेम में विरह निहित है और विरह होना ही प्रेम है,

प्रेम एक अंतहीन रास्ते का सफर है जिसमें बस चलते रहना है ,अकेले ,

किसी के दो पल के साथ के लिए और इंतज़ार सफर भर उसका करना

जो कभी हमसफ़र नहीं होना है.......



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