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Devraj Sharma

Abstract

3  

Devraj Sharma

Abstract

खिलखिलाती धूप की किरण

खिलखिलाती धूप की किरण

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एक खिलखिलाती धूप की किरण,

पड़ी जो एक पत्ते पर,

जीवंत करती वो धूप की एक किरण,

छट गये उदासी के बादल जो बिखरे थे आसमान में,

जो खिल खिलाई एक धूप की किरण आसमान में,

बंद कमरे में खिड़की से आई वो धूप की एक किरण,

चुभी जो आंखों में कहती उठो भोर हो चुकी है,


 देखो उठ कर बाहर दुनिया" शोर" हो चुकी है।।

   


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