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मेरी प्रेरणा

मेरी प्रेरणा

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मेरी प्रेरणा, मेरी माँ

जब से होश संभाला

और जब तक माँ रही

केवल सीखा ही सीखा।


न देखा कभी ऊँचे बोलते

न कभी डाँँटते फटकारते

हर काम साफ सुथरा

स्वयं माँ को ही करते देखा।


नहीं पता कब कैसे हम सीख गए

घर के सब काम काज

यद्यपि पढ़ी ज्यादा नहीं

पर उनकी सीख आती काम।


कमाने वाले पापा अकेले

घर में खाने वाले पाँच

न कभी कोई कमी हुई

बरकत रहती हर बार।


अतिथि देवो भव सीखा

आए कोई भी मेहमान

न कभी चेहरे पर शिकन

न कभी परोसने में नाकाम।


हँस कर स्वागत

हँसकर विदाई

माँ ने सिखलाई

सदा काम आई।


सर्वगुण सम्पन्न माँ

करती सदा यही प्रयास

हम भाई बहनों में

बहे संस्कार यही आस।


अपनी ता हम क्या करें बात

नाती पोती को भी दी साख

परिपाटी चलती रहे सदा दी

करती रही यही प्रयास।


धर की हर जिम्मेदारी

पूरी तरह निभाती थी

पापा को न परेशान देखा

परिवार सदा संग पाती थी।


कमी कभी हो यदि

न कभी किसी को पता चला

न जाने किस मिट्टी की बनी

जीवन हँसते ही कटा।


छोटी मोटी बीमारी का

न लगने देती थी पता

जब बिस्तर पर न पड़ी

तब तक रहती सदा खड़ी।


परिवार को कैसे चलाना है

कैसे हम सब सीख गए

गृहस्थी के हर काम में

माहिर हम सब हो गए ।


पापा से मिला विरासत में ज्ञान

माँ से मिली व्यवहारिकता

जीवन चक्की चली बेहतर

माँ -पापा के आशीर्वादों से।


केवल प्रेरणा स्रोत ही नहीं

माँ तो पूरी समुद्र थी

जब भी उसमें डुबकी लगाओ

कुछ मोती दे देती थी।


बेटा -बेटी का अंतर

कभी न हमने उनमें पाया

जो घर में आता था

सबने मिल बाँट कर खाया।


न कभी घर में नैकर रहा

सब अपनी जिम्मेदारी निभाते

जो एक बार कहा माँ ने

बिन प्रश्न वह काम हो जाते।


नहीं देखा कभी भगवान को

पर माँ ने आस्था जगा दी थी

हर परिस्थिति में तटस्थ रह

जिंदगी जीनी सिखा दी थी ।


न कभी वह पार्लर गई

न गई कभी किट्टी पार्टी

सादगी व सन्दरता की

प्रतिमूरत वह सदा रहीं।


सहनशीलता उनकी अपार

हममें भी कर गई संचार

आज के युग मे हम सब भी

सह लेते हर हालात /व्यवहार।


आज हम जहाँ पहुँचे हैं

वह माँ का ही प्रताप है

कोई कुछ भी कहे

मेरी माँ मेरा भगवान है।



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