मेरी पहली नज़्म
मेरी पहली नज़्म
जो मिला मुसाफ़िर वो रास्ते बदल डाले
दो क़दम पर थी मंज़िल फासले बदल डाले
आसमान को छूने की कूवत जो रखता था
आज है वो बिखरा सा हौंसले बदल डाले
शान से मैं चलता था कोई शाह की तरह
आ गया हूँ दर दर पे क़ाफ़िले बदल डाले
फूल बन कर वो हमको दे गया चुभन इतनी
काँटों से है दोस्ती अब आसरे बदल डाले
इश्क़ ही ख़ुदा है सुन के थी आरज़ू आई
ख़ूब तुम ख़ुदा निकले वाक़िये बदल डाले

