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Kaustubh Vats

Romance

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Kaustubh Vats

Romance

मेरी दोस्त

मेरी दोस्त

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वो बताती कभी नहीं इश्क़ अपना

पर जताती खूब है

वो मुझे दिखती भी नहीं इश्क़

अपना

पर चाहती खूब है


वो डरती है अपना मन खोलने से

पर मुझे अपना मानती ज़रूर है

वो देख के मुझे कुछ कहती नहीं

अक्सर

पर मुस्कुराती ज़रूर है


वो घबराती ज़रूर है मेरा हाथ

पकड़ने से

पर मेरे दिल को समझती

बहुत खूब है

वो रूठ जाती है कभी कभी

मुझ से

पर मैं रूठूं तो मुझे मनाती

बहुत खूब है


वो मुझे देखती है फिर अन-देखा

करती है हर रोज़

पर पीछे मुड़कर फिर हँसती

ज़रूर है

वो दस्तक देती है मेरे दिल पर

हर रोज़

पर अपना इश्क़ छिपाती

बहुत खूब है..


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