*मेरी चाहत*
*मेरी चाहत*
मुझे चाहत नहीं उन ख़ुशियों की
जिसमें अपनें नहीं हों
हर रात जिन्हें देख़, ख़ुश में होता,
वो मीठे सपनें नहीं हों।
मुझे चाहत नहीं उस महल की
जिसकी दीवार में पिता का प्यार ना हो
हरपल मेरी फ़िकर जो करती,
उस प्यारी माँ का वो दुलार ना हो।
मुझे चाहत नहीं उस आसमान की
जिसमें अकेले उड़ना हो
हर मंजिल बस सुना पड़ा हो,
दुःखी मन लेके फ़िर मुड़ना हो।
मुझे चाहत है उस छोटे घर की
जहाँ साथ मेरे अपनें हों
हर रात सो कर भी जागूँ जिनके लिए,
ऐसे मीठे वो सपने हों।