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HARSH GUPTA

Abstract Romance

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HARSH GUPTA

Abstract Romance

मेरी बंदिगी

मेरी बंदिगी

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यूँ दामन न छोड़ने की कसम खायी थे तूने,

अब तो तेरी हर कसम भी फीकी सी लगती है

जैसे मेरी चाय में चीनी कम सी लगती है,

तुझे हर रात सपने में सजा के सोता हूँ 

की जैसे तेरी तस्वीर कैद हो आईने में, दिल के

और रोज इंतज़ार करता हूँ ,

इस आईने के टूटने का,

इसे तसव्वुर कहूँ या मेरे दिल बंदिगी 

की मैं एक और आईना खड़ा कर देता हूँ


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