और न जाने
और न जाने
ना जाने अब कहाँ फिर से,
वो शिददत वाला प्यार हो पायेगा
रात भर तकिये को पकड़ के,
अंगड़ाइयां लेते हुए बातें करता था तुमसे,
कैसे अँधेरी सुबह में,
बस तेरी एक झलक देखने को
आंखें खुल जाती थी,
वो तेरी मेरी हाजमोला जैसी
कुछ खट्टी मीठी बातें,
बस लम्हों के साथ की,
बीती बातें बनकर,
कुछ ऐसी यादें बनकर रह जाएँगी,
तुम्हारा मुझे अपने आगोश में भरना
और सुबह की वो भीनी सी
महकी हुई तुम्हारी सासें
न जाने अब कहाँ से फिर
वापिस आ पायेंगी, ना जाने।

