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Shashikant Das

Abstract

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Shashikant Das

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मेरी बेटी!!!

मेरी बेटी!!!

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वक़्त की सुई जैसे थम सी गई,

खुशी के आँसु से आँखें नम सी गई।


अँधेरी अधुरी राह पे जैसे मिला आगे चलने का मोड़,

जब नन्ही ज़िन्दगी के संघ हुआ ऐसा अनोखा जोड़।


प्यासी मरुभूमि में मिला जैसे पानी के बूँद का श्रोत,

मन के अँधेरी कोठरी में प्रज्वल हो उठी ऐसी अलौकिक ज्योत।


अग्रिम पथ पर जैसे मिला पर्वतरोही को वायु के कण से पावन सांस,

जर्जरपूर्ण रूह में मिली शीतकालीन कोमल औंस की आश।


तेरे नन्हे पग से हो गया हमारा घर धन्य,

सृस्टि जैसे समा गयी ऐसा है तेरे मुख का शून्य।


दोस्तों, आज नहीं खेल पा रहा हूँ शब्दों के शब्दावली के संघ,

जब मेरे मन मस्तिक में ढल चुका है मेरे नन्ही परी का रंग।


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