मेरी आवाज़ सुनो...!!!
मेरी आवाज़ सुनो...!!!
क्या हुआ, जो आज मैं
टूटी-फूटी कुटिया का निवासी हूँ?
उन ऊँचे मकानों में रहनेवाले वो 'विशेष' जन
मेरी 'औक़ात' को नापने की 'नासमझी' न करें!
रहता हूँ बेशक़ मैं इस टूटी-फूटी कुटिया में,
मेरे ख्वाब, मगर अब भी टूटे-फूटे नहीं हैं...!
वो आज भी उस नीले आसमां को
छू जाते हैं...!!
ऐसे ही मैं नहीं खामोश बैठा हूँ...
मैंने अब तक हालात के आगे
अपने घुटने टेके नहीं...
मैं तो और आगे अपनी लड़ाई ले चलूँगा...!!
ये मेरी 'अपनी' लड़ाई है...
और मैं इसे खुद लड़ूंगा...!!!
मैं हरगिज़ नहीं मात खाऊंगा...!!!
चाहे कितने ही तूफां आए...
चाहे शरीर का अंग-अंग ढीला पड़ जाए,
पर मैं अपनी 'कद्र' खुद करूंगा...
मैं बेइंतहा अपनी लड़ाई लड़ूंगा...!!!
मुझे अपनी मंज़िल उन ऊँचे मकानों से
परे ही दिखता है...!!
इसलिए मैं अपना मक़सद कभी नहीं भूलता...
रहता हूँ, बेशक़, मैं इस टूटी-फूटी कुटिया में,
मेरे ख्वाब मगर, अब भी टूटे-फूटे नहीं हैं...!!!