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Suchismita Behera

Abstract

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Suchismita Behera

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मेरी आवाज़

मेरी आवाज़

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आज खामोशी गुनगुना रही है

शान्त आवाज गूंज रही है

वाकिफ में क्या हलचल मची हुई है

इस धीरता में सुकुन नहीं है ।


मेरी आवाज़ मुझे कहती है

वापस सुन, वह ऐसा दोहराती है

कल जो करने के ख्वाब में था

आज की बंदिश बता गया तुझे ।।


आवाज़ धीर रख

चिल्लाना तो समय को भी आता है

बस नम्र नज़र से जीना सीख

पतझड़ का मौसम सबके लिए होता है ।।


पलकें झुका

गर्दन ऊपर करने का वक़्त तेरा भी आएगा

धीरज रख

समय का सिलसिला ऐसा गुजरता जाएगा ।।


मेरी आवाज़ मुझे कहती रहती है

समय के साथ, तू खुदको अवश्य ढूँढ़ पाएगा ।।



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