मेरी आँखें, तेरे सपने
मेरी आँखें, तेरे सपने
"राम, बुलंदशहर पुलिस एथलीट मीट जीत गया !"
राम बस नहीं था उनके घर के सदस्य का नाम,
वह तो था पूरे गाँव की शान.
इसमे थे परिवार के कई बलिदान,
सबने मिल कर चुकाया था "इस" राम का दाम.
पर अभी और संघर्ष देखने थे बाकी,
पिता पर बढ़ता जा रहा था काम का बोझ काफी.
पर उनकी आँखों मे तब थकान ना दिखती,
जब गाँव मे राम के चर्चे और खबरे होती।
अंतिम वक़्त तक उन्होंने अपने बेटे के
सपनों को अपनी आँखों से जिया,
इरादा तो पक्का था पर बूढ़े शरीर ने
धोखा दे दिया।
मृत आँखों मे भी बेटे की सफलता
देखने की व्याकुलता साफ़ दिखती,
यूँ बेवक्त अपनी हार की झुंझलाहट से
जैसे बंद थी उनकी मुट्ठी।
बिलखते बेटे ने जब पार्थिव शरीर को आग से जलाया,
तब शहर से उसका दोस्त ये खबर लाया
"राम, तू नेशनल कैंप के लिए सेलेक्ट हो गया।