मेरे तुम, तुम्हारी मैं
मेरे तुम, तुम्हारी मैं


मेरे तुम,
चाहकर भी मैं तुमसे
नहीं कह पाई कि
मेरी सांसों में जो खुशबु
घुली है, वह तुम्हारी है।
मेरे सजे-संवरे बालों से
जो लट झांकती है,
वह तुम्हारे स्पर्श को ही
तरसती है।
हवाएं अपनी सरसराहट से
आज भी मुझे छलती हैं,
जैसे कानों में कुछ कहा हो
तुमने पर कह देती हूं।
पर कह देती हूं आज मैं,
यह तुम्हारा ही नशा है,
जिसने मुझे प्रेम में डुबोया है।
तुम्हारी आंखें ही हैं
जिसने मुझे प्रेम में भिगोया है
तुम्हारी मैं..