STORYMIRROR

Gagandeep Singh Bharara

Abstract Classics Inspirational

4  

Gagandeep Singh Bharara

Abstract Classics Inspirational

मेरे सपने

मेरे सपने

1 min
334

कभी जीते थे हम किसी और के लिए,

कभी मरते भी थे किसी और के लिए,


अब करवट शायद बदल रही है,

हवाओं ने भी रुख मोड़ लिया है,


अब खुल के जीने का मौसम है आया,

खुद पर तव्वजो देने का सेहर है आया, 


अब बीती जो बातें वो भूल गया हूँ,

अपने अंतर्मन में खुश हो रहा हूँ,


देखे जो सपने वो तलाश रहा हूँ,

खुल के अपने लिये जी रहा हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract