मेरे पिता
मेरे पिता
मेरा मान, मेरा अभिमान, मेरा स्वाभिमान
मेरा परिवार के मुखिया, कुटुम्ब की शान
हर सदस्य की आवश्यकता की पूर्ति
हेतु सदैव तत्पर,
सब मिलकर एक साथ रहें,
इसी में प्रयत्नशील,
बेटे का हर पथ पर मार्गदर्शन करते
बेटी पर अपार स्नेह न्योछावर करते,
बस यही प्रतीक्षा करते,
कि मेरे बच्चे जहाँ भी रहें
परिवार का गौरव बनाये रखें,
एक अथाह, घने व सुदृढ़ वृक्ष की तरह
अपनी उभरती, नवीन शाखाओं को
स्वयं में सहेजते हुए,
उनमें अपने सद्गुणों का
संचार करते हुए,
जीवन के हर आंधी तूफान में भी
अपनी स्थिरता बनाए रखते हुए,
ये सभी कार्य। " एक पिता " किस
आसानी से कर जाता है,
इसका मूल्यांकन करना भी असंभव है,
इन सब के अतिरिक्त, उनके हृदय में
सनेह, प्रीत और प्रेम का
अनंत भंडार है,
कहते हैं कि मातृत्व से बढ़कर कोई भाव नहीं,
परन्तु एक पिता के प्रेम का भी कोई मोल नहीं
क्योंकि वो अपने भावों को दर्शाते नहीं
इसका ये अर्थ नहीं कि उनमें संवेदना नहीं
मेरे जीवन में तो मेरे पिता से अधिक
कोई प्यारा और संवेदनशील नहीं,
क्योंकि मैने अपनी "विदाई" पर
उन्हें निशचल झरते अश्रुओं के साथ
एक किनारे खड़ा देखा है।