मेरे मनवा
मेरे मनवा
ढलता सूरज घना अंधेरा
देख न हो बेजार
नई सुबह की किरणों से
जीवन होगा गुलजार
शाख से छूटे फूल और पत्ते
देख न हो बेजार
खिलती कलियां महकेंगी
उपवन होगा आबाद
अपने रूठे अपने छूटे
देख न हो बेजार
मन में तो वो बसे हुए हैं
जब तक है यह सांस
कल आज और कल से
देख न हो बेजार
समय की चाल से चल ले
जीवन होगा खुशहाल
पिंजरे का पंछी न छोड़े
पिंजरे का कभी साथ
जान के दुश्मन जब दिख जाएं
पिंजरा बने आवास
न कर शिकवा गिला वक्त से
वक्त है मेहरबान
बीते दिन फिर आ जायेंगे
कर ले यह विश्वास।
