मेरा उत्तराखंड
मेरा उत्तराखंड
खिलती है लाल बुरांस की डाल यहां ।
दिखती है कस्तूरी मृग की कुलांच यहां।।
कर्मठपन और सीधा-साधा है भोलापन।
कमर में रस्सी संग है बलखाता बाला तन।।
पर्वत पहाड़ हिम श्रृखंला से सजा ये खंड।
देव-वीरों की शान है ये पावन उत्तराखंड।।
देवांचल-वीरांचल में ही बस्ती मेरी जान है।
सरलता संस्कृति, संजीवनी संसाधन शान है।।
गंगोत्री-जमनोत्री की स्वर्णिम धार यहां है।
आस्था चिन्ह बद्री-केदारनाथ नाम यहां हैं।।
संघर्ष-मेहनत के श्रृंगार से पली बढ़ी यहां बालाएं।
सरिता-सी चंचल स्व पथ बनाती हैं ये धाराएं।।
सारा-सारा दिन कठोर श्रम हैं ये करती।
शायद कभी ही बोल!उफ्फ! थका हैं करती।।
श्वेत कणों से श्रृंगारित हैं प्रबल चेहरे इनके।
होंठों में मुस्कान ,लहजे में है सरलता इनके।।
बनावटी साजो-श्रृगांर से ये हैं परे बहुत अंजान।
कमर दरांती है,शीश घास का गठ्ठर यही पहचान।।
उत्सव मेलों की मधुर मिलती बहार यहां है।
हास-परिहास संग रिश्तों का त्योहार यहां है।।
झौड़ा चांचरी, झुमेलों के मिलते सुर-ताल यहीं है।
सुंदर गीतों संग हुड़के से निकली थाप यहीं हैं।।
झंगुरा,मडुवा,मक्का से बनते यहां पोष्टिक व्यंजन।
इससे ही है बना मेरे उत्तराखंड का बलिष्ट धन-जन