मेरा स्वार्थ
मेरा स्वार्थ
हां मैं स्वार्थी बन गया हूं आजकल
इस महामारी से आलसी बन गया
लोगों से बहुत दूरी बनाए रखी है
शायद किसी से कोई मतलब नहीं।
रास्ता बदल देता हूं उन्हें देखते ही
कौन जाने वो मेरा आलिंगन कर दे
रिश्तों की मिठास ख़तम हो रही है
शायद रिश्ता शब्द ख़तम होने को है।
सजगता को शक कहते रहते थे वो
मुझे आज शक की नज़रों से देखते
मैं सिर्फ अपने ही बारे में सोचता हूं
शायद औरों के लिए समय ही नहीं।
मेरा स्वार्थ ही मेरी सुरक्षा बन गया है
अच्छा लगता है मुझे वो मतलबी कहें
अगर हर कोई स्वार्थी बन जाए आज
शायद महामारी का नाम ही न रहे।