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Sudhi Siddharth

Abstract

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Sudhi Siddharth

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मेरा सम्मान मेरी पहचान

मेरा सम्मान मेरी पहचान

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थोड़ा नहीं पूरा सम्मान चाहिए

मेरा समस्त जीवन मुझे आसान चाहिए

क्यों कथनी तेरी कथन तेरा,

शादी का वचन तेरा

क्यों सिन्दूर तेरी आन का,

मैं भरलूं अपनी मांग में।


क्या मिलेगा ?

तुझे सरस्वती से आस है,

लक्ष्मी भी तेरे पास है

दुर्गा से सब संभावना,

काली तेरी आराधना।


मैं कौन हूँ ?

पिता तेरा अभिमान है,

बहन मे तेरी जान है

मां ही तेरा ईश्वर,

और तू "मेरा पति परमेश्वर।


मैं कहां हूं ?

अब जन्म मे आरम्भ में,

मृत्यु में प्रारम्भ में

नीर में धीर में, राग में द्वेष में

इस समस्त परिवेश में।


मैं रहूंगी

दृष्टि में स्वप्न में,

प्रकृति के अपनत्व में

मान में अभिमान में,

स्वयं के सम्मान में।


थोड़ी नहीं पूरी

पहचान चाहिए

मेरा समस्त जीवन

मुझे आसान चाहिए।


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