STORYMIRROR

Sudhi Siddharth

Abstract

3  

Sudhi Siddharth

Abstract

ख़ुद मुख़्तारी

ख़ुद मुख़्तारी

1 min
260

जाओ अय्याशियां करो 

आवारा घूमो

कुछ बदमाशियां करो

तोड़ दो सारे ज़ेहनी ताले

जंजीरो को आग पिलाओ

पुराने मलबूस छोड़ो

नया आसमां बनाओ


उड़ो परवाज़ ऐसी

कोई सदा सुनाई न दे

और चीखें ऐसी

दुनिया की हर शय हिले

किसको क्या दिया

किससे क्या मिला

क्यों सोचते हो

सब कहानी है

जो बीत गया सो बीत गया

हर फ़िक़रा बेमानी है

तुम मेरे अक़्स हो 

तुम मेरे ख़्वाब हो

बेफ़िक्र रहो आबाद रहो

जहा भी रहो आज़ाद रहो

 

ज़ेहनी-Intellectual  मलबूस-Clothes   परवाज़-Flight   सदा-Ring/Call/Shout  शय-Thing फ़िक़रा-Sentence बेमानी–Meaningless अक़्स-Shad



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract