में बावरी
में बावरी
में बावरी, अंजान, रेत के दानों को
तारे समझ बालों में सजा बैठी
सिंदूर का रंग, गजरों की सुगंध, रुबाई में मलंग
तुझे ख़ुदा मान दिल से लगा बैठी
ऊम्मीदों का संदूक, प्यार की छाब,
वफ़ा का तोहफ़ा तेरे ही नाम कर बैठी
सुबह की रोशनी, सांज का केसरी आकाश
रात का सन्नाटा सब तेरे साथ बाँट बैठी
ग़मो के सागर मेरे, खुशियों के दरिया
तेरे लिए वसीहत में गवा बैठी
सारा जग वारा तुझपे, मेरी ज़िन्दगी का सौदा तुझसे कर बैठी
क्या बताऊँ सबसे बड़ा धोका खुद ही से कर बैठी
में बावरी, ये भी ना जानी, आग से जल कर,
आतिश में, शोलों में दिल पर कलंक लगा बैठी
तुझपे वारी हर ख़ुशी कुर्बान, हर लम्हा रदद् है
में बावरी, सब जान कर खुदही से इश्क़ कर बैठी
नदी का किनारा, सूरज का डूबना,
जुगनू वाली रात सब का अकेले ही मज़ा ले बैठी
तुझसे हट कर पहली बार आइना देखा था,
आँखों ही आँखों में साथ देने का वादा कर बैठी

