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Khushi Acharya

Abstract

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Khushi Acharya

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मेरा

मेरा

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बिन चुभे ये खून केसा, कुछ तो मेरा मरा है

ये उलटी गंगा का शोर केसा, कुछ तो मेरा बहा है।


वो आखरी रात का सपना केसा, कुछ तो मेरा टूटा है 

वो वादों से डर केसा, कुछ तो मेरा गुम हुआ है।

 

ये वक्त का बदल जाना कैसा, कुछ तो मेरा छूटा है 

लहरों का पानी में डूबना कैसा, कुछ तो मेरा छिना है।


सुना हुआ ये शोर है, कटते इनमे सन्नाटे, मेरा कुछ तो तन्हा है

पर चैन है इसमें, ख़ुशी है मेरी, डर नहीं हम खुद ही अपने पास है।


जब खुद ही से हो सारा वास्ता तो बचा कौन जो ख़ास है ?

अब खुद में ये एहसास है, जब तक जान हे सीने में


अपना यही आखरी, यही आगाज़ है।


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