शिव
शिव
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भस्म का लेप और ललाट पर चंद्र का सिंगार,
सांप और विष कंठ में, नंदी पर है ये सवार।
भूत प्रेत पिशाच की टोलियों के सरदार
तांडव का स्तोत्र, रूद्र देव त्रिकाल के जानकार।
अघोरी शरीर पर चमड़े का वस्त्र, सुंदरता के अखंड सार
भोले बोले कम ही पर बोले वो जिसमे ज्ञान अपार।
आदि और अंत वही फर भी चले अनंत वही
कैलाश के अधिपति सभी के पिता यही।
उनकी चाल लाती हे भूचाल, क्रोध में हे वह अग्नि का आकार
बिली के दीवाने, धतूरे उनको प्रिय हर बार।
सारे लोक के वह तारणहार,
जितना भी करो इनका कम है आभार।
