मेरी क़लम
मेरी क़लम
मेरी कलम से जिंदा हूं
कुछ अनकहा था, कभी
मैने एलान किया
जज़्बातों का कारवां फिर
कागज़ के नाम किया
जब आँखों में सूखा पड़ा
और अश्कों ने इन्कार किया
मेरी कलम ने ऐसा खेल
दिखाया ख़त में आशिक़
को ज़िंदा किया
सपनों को ज़ुबान देकर
आज़ाद किया
मेरी कलम ने यह काम किया
मेरी पहचान को आबाद किया
आवाज़ मेरे लफ़्ज़ों में जो है
किसने इनको इतना मज़बूत
किया?
मेरी बातों को सुनने वाला कोई
नहीं किसने इनके साथ गुफ़्तगू किया?
लाश बनके जी रहा था जब
उसने मुझे ज़िंदाबाद किया
मेरी कलम ने मुसाफिर बन के
मेरा हर पल साथ दिया
लोग बातें करते हैं मेरी लिखावट की
मुझ पर रहमत का उपकार किया
मुझे भूल जाना, मेरे काम का
मोल किसने किया?
मौत मेरी होने के बाद क़ब्र पर
सलाम किसी ने नहीं किया
मेरी कलम से जिंदा हूं आज भी
इसने मुझे मशहूर किया मेरी कलम ने