मेहनत का उजाला
मेहनत का उजाला
हरा दे अपनी हार को , हिम्मत से अब काम ले
मेहनत अपनी किये जा रुकने का अब न नाम ले।
आसमान की ऊँचाई सा, इस धरा की गहराई सा।
घनघोर तिमिर के पृथुदिक में,चमक रहा ध्रुव तारे सा।
एक बार पहचान ले ,मन में अपने ठान ले।
मेहनत अपनी किये जा रूकने का अब न नाम ले।
देख ले सूरज को , जाकर फिर वो आता है।
कितना भी हो अँधियारा लेकिन वो उजियारा फैलाता है।
अडिग अचल हिमालय सा, स्थितप्रज्ञ रहना जान ले।
मेहनत अपनी किये जा रुकने का अब न नाम ले।
है कौन सा पर्वत वो जिसने नदियों को रोका है।
मन में गर साहस हो तो, हर मुश्किल भी छोटा है।
सच्चाई ही जीते हरदम,हौसले का दामन बस थाम ले ।
मेहनत अपनी किये जा , रुकने का अब न नाम ले।
नभ में तम के बादल फैले, फिर भी तारे चमकते हैं।
मेहनत जिसके रग-रग में हो, वो ही तो इतिहास को रचते हैं।
इतिहास रचना है गर तो ,वर्तमान को पहचान ले।
मेहनत अपनी किये जा,रुकने का अब न नाम ले।
