बाल श्रमिक
बाल श्रमिक
बाल श्रमिकों का जीवन,होता
पिंजरें में कैद पंछियों के समान।
पढ़ने-खेलने की उम्र में,
करने लगते हैं वो काम ।।
गरीबी के कारण ही इनके,
माता-पिता होते हैं लाचार ।
इसी समस्या से उबरने,
काम करते ये घर और बाजार ।।
गरीबी के कारण ही ये,
अपने बच्चों से काम कराते।
छोटी सी उम्र में मजदूर बन,
ये बच्चे ही बाल-श्रमिक कहलाते।।
इन्हीं कारणों से ही ,
बच्चे जीवन व्यर्थ कर जाते ।
प्यार-दुलार पाने की उम्र में,
मालिक की डाँट जरुर सह जाते।।
पर क्या इन गरीबों की,
कभी होती है आवश्यकता पूरी।
आवश्यकता तो पूरी नहीं होती,
बढ़ती है काम करने की मजबूरी।।
इसी तरह बाल-श्रमिक बनकर,
ये बच्चे तो बड़े हो जाते हैं ।
पर गरीबी और अभाव में,
शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।।
मानवीय मूल्यों का ज्ञान,
हो पाता
है बहुत कम।
गरीबी से उबर न पाने का,
इनको होता है गम ।।
लेकिन फिर भी संपन्न बनने हेतु,
करने लगते वे विचार ।
लाचार हो इनमें से कुछ,
चोरी,डकैती जैसे करते अत्याचार ।
गरीबी से निपटने हेतु,
वे देते ऐसा अंजाम ।
पर क्या इससे शान्त होता,
उनके मन का संग्राम।।
ऐसे ही आगे अब वे,
पुलिस की गिरफ्त में आ जाते।
संपन्न बनने की कोशिश में,
पूरा जीवन व्यर्थ कर जाते ।।
ऐसा होता है उनकी गरीबी,
अभावग्रस्तता के कारण ।
ऐसा होता है उनमें,
नैतिक मूल्यों की कमी के कारण।
अगर ऐसी समस्या से ,
यदि राष्ट्र को है उबरना।
तो गरीब से गरीब जन को,
जरुरी है शिक्षित करना।।
प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित जब हो,
तभी सब में होगा नैतिकता का विकास।
राज्य और देश में उन्नति के साथ,
होगी पूरी सभी गरीबों की आस ।।