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GAUTAM "रवि"

Abstract Classics Others

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GAUTAM "रवि"

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मौत

मौत

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हाँ मौत से डर नहीं लगता अब मुझे,

पहले भी मर चुका हूँ कई दफा मैं,


कभी पिता की ख्वाहिशों के लिए,

मैंने दफना दिये अपने अरमान,

तो कभी माँ की उम्मीदों के आगे,

भुला दिये सभी अहसास,


कभी आधे अधूरे से ख्वाब थे,

कभी मन के टूटे फूटे जज़्बात थे,

कभी प्रेम के लिये सब कुछ लुटा बैठा,

कभी औरों की खुशी के लिए खुद को भुला बैठा,


कभी मुसीबत भी तन्हा झेलीं मैंने,

कभी मुश्किल भरे हालात थे,


खुद के लिये खुद से लड़ता रहा हूँ मैं,

बतलाऊं किसे कि कैसे जी रहा हूँ मैं,


सब कुछ गवां कर भी बाकी नहीं कोई अफ़सोस,

मौत से डर लगे भला क्यूँ,

यूँ ही मरता रहा हूँ मैं हर रोज़।


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