STORYMIRROR

Vinita Rahurikar

Abstract

3  

Vinita Rahurikar

Abstract

मौन में...

मौन में...

1 min
557


मौन हूँ मैं

सुन रही हूँ

समय की बहती नदी में

धरती के घूमने का स्वर।


सदियों के बीतने की ध्वनि

जीवन की उतपत्ति का

पहला संकेत

वेदों की ऋचाओं की रचना

सूक्तियाँ, उपनिषद में रखा जाना।


समस्त ज्ञान को सहेजकर

राम जन्म के बधाई गीत

सीता का चुपचाप समा जाना

धरती की गोद में।


कृष्ण का गीता ज्ञान देना अर्जुन को

महाभारत युद्ध की वो

भीषण चित्कार

घूमते रहना तमाम पीड़ा सहकर भी

धरती का यथावत।


बहुत कुछ सुन चुकी हूँ

फिर भी न जाने कितना कुछ

रह गया है सुनने का

अंतरिक्ष के इस निर्वात में

धरती मौन रहकर ही

लीन है सतत नए सृजन में।


और मैं अपने मौन में

प्रयत्न कर रही हूँ

उसके सृजन की साक्षी होने का...।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract