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SN Sharma

Abstract Inspirational

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SN Sharma

Abstract Inspirational

मैंने छोड़ दी।

मैंने छोड़ दी।

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उम्मीदें बहुत थीं मेरी तो सदमे भी बहुत थे।

अपने सुकून के लिए उम्मीद करना छोड़ दी।

उम्र के इस मोड़ पर आनंद से रहने के लिए।

रोज के आय खर्च की चिंता करना छोड़ दी।

हाथ में अपने कुछ नहीं यह अनुभव हुआ।

इसलिए भविष्य की चिंता करनी छोड़ दी।

बच्चे बड़े जब हो गए निर्णय स्वयं लेने लगे

अब मौन हूं मैं , बेवजह सलाह देना छोड़ दी।

साथ देना हाथ पैरों ने जो मुझसे कम किया।

बेवजह बेकाम की सब यात्राएं मैंने छोड़ दी।

उम्र के इस मोड़ पर तय है दुनिया से बिछड़ना।

धीरे धीरे मोह के बंधनों की डोर मैंने खोल दी।



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